हड़बड़ी में साल बीत गया। आज मुझे लगा मैं ही साल भर हड़बड़ी में रहा। साल तो अपनी ही गति से बीता। लगभग हर बीते हुए साल की यही कहानी है।
वैसे आज कुछ ज्यादा ही हड़बड़ी है मुझे। शुभकामना संदेशों से व्हाट्सएप्प भर रहा है। इन्हें पढ़ने की मुझे हड़बड़ी है और फिर उत्तर देने की भी। सच कहूँ तो इन का व्हाट्सएप्प सन्देश उनको भेजने की हड़बड़ी ज्यादा है। २०१७ धीरे से दस्तक देगा। मगर आदत से मजबूर मैं उसका स्वागत भी हड़बड़ी में ही करूंगा। फिर लगेगा अब तो आ ही गया तो पूरे ३६५ दिन तो साथ रहेगा ही। चलो कम्बल तानते हैं और सो जाते हैं।
वैसे हड़बड़ी सोच का हिस्सा सा बन गया है। बस सोने को छोड़ हम सब कुछ हड़बड़ी में करते हैं। आँख खुलते ही हड़बड़ी हम पर सवार हो जाती है। ओफ़्फ़्फ़ इतनी देर हो गयी। चाय को फूँक मारते हुए अख़बारों केपन्ने पलटते हैं। जल्दी जल्दी फ्रेश होते हैं। सुबह पूजा पाठ करने वाले भी तेज गति से दैनिक मंत्रोच्चार करते हैं। नाश्ता करते नहीं बल्कि निपटाते हैं। भागते हुए अपने कार्यस्थल पर पहुँचते हैं। और यूँ हड़बड़ी में दिन की शुरुआत करते हैं। सामन्यतः दिन ख़तम होने के समय ही नए काम दे दिए जाते है जिन्हें हड़बड़ी में आधा अधूरा कर हम घर लौटते हैं। घर लौटते हुए कुछ हड़बड़ी हम साथ रख लेते हैं। यानि शाम में गृह प्रवेश हड़बड़ी के साथ ही होता है। यह है हड़बड़ी की महानागरीय गाथा।
छोटे शहरों में हड़बड़ी तो तब होती है जब कुछ आता या जाता है। एक साल का जाना और दूसरे का आना इन छोटे शहरों में थोड़ी हड़बड़ी लाता है। ऐसे समय में हड़बड़ी उत्सव के मोद का हिस्सा बन जाती है। हड़बड़ी इन जगहों पर बड़े शहरों के संक्रमणं के रूप में भी पदार्पण करती है। जिनके जीवन में ऐसा होता है उन्हें इन छोटे शहरों का मॉडर्न व्यक्ति माना जाता है। जिसके पास जितनी कम हड़बड़ी वह उतना ही अधिक अमॉर्डेन।
मैं मॉडर्न और अ मौडर्न के बीच का व्यक्ति हूँ। कभी कभी हड़बड़ी में होता हूँ। जैसे आज। २०१६ के जाने और २०१७ के आने तक हड़बड़ाया रहूँगा।
वैसे तो मेरी शुभकामना सदैव आपके साथ है लेकिन हड़बड़ी में शुभकामना लेने - देने का आनंद ही कुछ और है।आप भी लुत्फ़ लें इसका। नव वर्ष की मंगलकामना।
करुणेश
पटना
३१। १२। २०१६
वैसे आज कुछ ज्यादा ही हड़बड़ी है मुझे। शुभकामना संदेशों से व्हाट्सएप्प भर रहा है। इन्हें पढ़ने की मुझे हड़बड़ी है और फिर उत्तर देने की भी। सच कहूँ तो इन का व्हाट्सएप्प सन्देश उनको भेजने की हड़बड़ी ज्यादा है। २०१७ धीरे से दस्तक देगा। मगर आदत से मजबूर मैं उसका स्वागत भी हड़बड़ी में ही करूंगा। फिर लगेगा अब तो आ ही गया तो पूरे ३६५ दिन तो साथ रहेगा ही। चलो कम्बल तानते हैं और सो जाते हैं।
वैसे हड़बड़ी सोच का हिस्सा सा बन गया है। बस सोने को छोड़ हम सब कुछ हड़बड़ी में करते हैं। आँख खुलते ही हड़बड़ी हम पर सवार हो जाती है। ओफ़्फ़्फ़ इतनी देर हो गयी। चाय को फूँक मारते हुए अख़बारों केपन्ने पलटते हैं। जल्दी जल्दी फ्रेश होते हैं। सुबह पूजा पाठ करने वाले भी तेज गति से दैनिक मंत्रोच्चार करते हैं। नाश्ता करते नहीं बल्कि निपटाते हैं। भागते हुए अपने कार्यस्थल पर पहुँचते हैं। और यूँ हड़बड़ी में दिन की शुरुआत करते हैं। सामन्यतः दिन ख़तम होने के समय ही नए काम दे दिए जाते है जिन्हें हड़बड़ी में आधा अधूरा कर हम घर लौटते हैं। घर लौटते हुए कुछ हड़बड़ी हम साथ रख लेते हैं। यानि शाम में गृह प्रवेश हड़बड़ी के साथ ही होता है। यह है हड़बड़ी की महानागरीय गाथा।
छोटे शहरों में हड़बड़ी तो तब होती है जब कुछ आता या जाता है। एक साल का जाना और दूसरे का आना इन छोटे शहरों में थोड़ी हड़बड़ी लाता है। ऐसे समय में हड़बड़ी उत्सव के मोद का हिस्सा बन जाती है। हड़बड़ी इन जगहों पर बड़े शहरों के संक्रमणं के रूप में भी पदार्पण करती है। जिनके जीवन में ऐसा होता है उन्हें इन छोटे शहरों का मॉडर्न व्यक्ति माना जाता है। जिसके पास जितनी कम हड़बड़ी वह उतना ही अधिक अमॉर्डेन।
मैं मॉडर्न और अ मौडर्न के बीच का व्यक्ति हूँ। कभी कभी हड़बड़ी में होता हूँ। जैसे आज। २०१६ के जाने और २०१७ के आने तक हड़बड़ाया रहूँगा।
वैसे तो मेरी शुभकामना सदैव आपके साथ है लेकिन हड़बड़ी में शुभकामना लेने - देने का आनंद ही कुछ और है।आप भी लुत्फ़ लें इसका। नव वर्ष की मंगलकामना।
करुणेश
पटना
३१। १२। २०१६
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