Monday, 27 November 2017

आज की कविता ; आज के लिए

न्याय मरे
न्यायधीश मरे
न्यायालय लेकिन मौन ।
इतने सर हैं , इतने बाजू
देखो लेकिन
बोले, कितने - कौन ?
सत्ता की कुंडी खड़काने
आये जो दो - चार
सजा देखकर हुए दंग ये
रास - रंग दरबार ।
राजा जी के सर पर देखा
रत्न जटित एक ताज
राज्यासन पर शोभित देखा
राजा जी को आज ।
प्रहरी चारों ओर खड़े थे
लेकर के बंदूक
कोष लूटाने को दरबारी
खोल खड़े संदूक ।
कुंडी तो अब खड़क चुकी थी
पहुंच गई आवाज
राजा जी ने फ़ट से पूछा
अब क्या है नासाज़ ?
मंत्री बोले -
अभय रहे साम्राज्य सदा
कहता सत्ताधीश !
ये आवाज़ें बेमानी हैं
ये बिगड़े कलमनवीस ।
भ्रू इंगित पर सालों पहले
शासन का जो न्याय
मांगे आज समीक्षा उसकी
कहते - 'था अन्याय' !
राजा जी ने कहा गर्व से
होकर के गंभीर
निर्वाचन से शासन चलता
यह निर्वासन की पीर ।
आया है माकूल समय
अब करें धर्म आराधन
आज नहीं तो कब उपयोगी
सत्ता के संसाधन ?
रौनक वापस फिर से आई
सत्ता के दरबार में
कुंडी लेकिन खड़क रही है
घर - घर में , बाजार में ।

करूणेश
पटना
27 । 11 । 2017








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