मुझे ब्लॉग की जरूरत क्यों महसूस हुई. आज के इंटरनेटि युग मे शायद ऐसा कुछ भी नहीं जो लिखा , सुना देखा या पढ़ा न गया हो. फिर भी कुछ छूट जाता है मेरे हिसाब से या शायद उस तरीके से कहा , सुना, पढ़ा या देखा नहीं जाता। अब तक मेरी आवाज घरवैया ही रही. कुछ लिखना उस से भी कम सहेजना और उस से भी कम कहना पर सोचना जारी रहा। वैसे भी सोच कर सोचा कहाँ जा सकता है। सोचने के लिए विषयों की कमी कभी नहीं रही। वैसी हर बात जो स्फुरण दे , सहलाये या सिहरन पैदा करे सोचने के लिए उकसाती रही। और इस तरह सोचना भी मेरे दैनिक चर्या का एक हिस्सा बन गया. क्रिया कर्ता के ऊपर हावी हो गयी। और सिलसिला यहाँ तक आ पहुंचा।
यह भी कि अग्रजों का प्रोत्साहन और उस से भी ज्यादा अनुजों की अनुशंसा इस का कारक रही। नामों के औचित्य और महत्व से ज्यादा उनकी सहभागिता और सहजीविता है.
मेरे इस उपक्रम का उद्देश्य मात्र अपनी कहना ही नहीं आप की सुनना भी है। आईये गप करें।
करुणेश
पटना
३०। ११। २०१६
LATER is better than NEVER....
ReplyDeleteWish the things begin today ,will remain to stay for longer period . Irrespective of the quantity and quality of response. May the goal for these writing should inclined more towards
स्वांत सुखाय
ईति शुभ।
Lot of thanks.You are also one of the reasons for this
ReplyDeleteder aaye durust aaye :)
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