Thursday, 1 December 2016

प्रश्नों का मूल्यांकन

प्रश्नों का आधार क्या होता है - कौतुहल , जिज्ञासा , समस्याओं  के समाधान की कोशिश या समस्याओं का उत्तर।  बचपन से ये बताया गया कि जिसे आप नहीं जानते या जिसे जानने की जरूरत हो उसे जानने के लिए प्रश्न पूछने होते हैं. अर्थात अज्ञान प्रश्नों की  पूर्व पीठिका है।
बच्चे अज्ञानी होते हैं ऐसा हम सभी मानते , जानते और समझते हैं और  बड़े इसलिए बड़े होते हैं कि  वे ज्ञानी बेशक न हों अज्ञानी तो नहीं ही होते हैं. यह लोक प्रचलित मान्यता है. फिर भी बड़े इन  दिनों इतने प्रश्न पूछ रहे हैं जितने  उन्होंने अपने बचपन के दिनों में भी नहीं पूछे।  और ऊपर से तुर्रा ये कि  इन्हें अज्ञानी भी नहीं कह सकते।  मैं स्वयं इनमे से एक हूँ।
तो फिर क्या बड़े प्रश्न ही न पूछें।  यह  तो संभव ही नहीं।  लेकिन एक काम तो कर ही   सकते हैं।  वो यह कि ज्ञानी होने की   चादर ओढ़कर प्रश्न न पूछें। शायद ऐसा करने से प्रश्नों की संख्या कम  हो और उनका मूल्य बढ़ जाये।उत्तरों की गुणवत्ता और अर्थवत्ता भी बढ़ने की आशा की जा सकती है।

करुणेश 
पटना 
१। १२। २०१६ 

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