तब जब अधिकांश लोग स्वरोजगार में या कृषि कार्य में रत होते थे तब भूंजा शनिचर की याद दिलाता था। वैसे उन दिनों गांवों में वीक एन्ड के प्रचलन की सम्भावना एकदम ही नहीं होगी लेकिन शनिचर को ही भूंजा दिन क्यों माना गया। अगर वीक एन्ड को आज के शहरी सभ्यता के विकास का एक चिह्न माने तो इस लिहाज से भूंजा का शनिचर के साथ सम्बन्ध का क्रेडिट बिहार को देना बनता है।
आज का भूंजा पहले के भड़ भूंजा का परिवर्धित एवं संशोधित संस्करण है। बचपन में खाये हुए भुंजे का सोंधापन आज के शहरी भुंजे में नहीं मिलता। भूंजा के मुख्य घटक होते थे चावल , चना , और मकई। सामान्यतः मूढ़ी और चूड़ा भूंजा का हिस्सा पहले नहीं होता था। इस भुंजे की खास बात ये थी कि बच्चे इसे खेलते भागते खाते थे और बड़े मिल बैठकर। भूंजा खाने की गंवई संस्कृति शहरों में आ तो गयी पर छूट गया बच्चों का खेलते भागते खाना और बड़ों का मिल बैठना। लोग अब पहले से से ज्यादा संस्कारित हो गए हैं।
शनिचर का दूसरा लोक नाम खिचड़ी भी है। खिचड़ी बनाना खाना दोनों आसान। कहते हैं खिचड़ी के चार यार - चोखा ,चटनी ,घी,अचार। समय के साथ इसके यारों की संख्या बढ़ गयी जैसे पापड़ ,तिलौरी ,दनौरी आदि। ठण्ड के दिन की खिचड़ी कुछ अधिक ही स्वाद देती है। खिचड़ी में आलू और भंटा (गोल बैंगन ) के चोखा के सिवा और कोई चोखा नहीं बनता।
कहते हैं शनिचर नामक एक ग्रह है जो व्यक्ति के जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करता है। ऐसा सामान्यतः सारे ज्योतिषी मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन काल में कम से कम एक बार शनिचर मनुष्य की परीक्षा जरूर लेता है। और वो भी बड़े क्रूर और निर्दयी ढंग से। शायद यही कारण है कि सामान्य बोल चाल में हम शनिचरा शब्द का प्रयोग शनिचर से ज्यादा करते हैं। आखिर छात्रों में परीक्षक के प्रति कुछ तो आक्रोश होगा। इस दिन खान पान भी शायद इसीलिए इतना सादा सादा है। परीक्षा और परीक्षक बच्चों और बड़ों दोनों को समान रूप से अच्छे नहीं लगते।
पटना
१७। १२। २०१६
शनिचर का गवई विबेचन। खासकर बिहार के सनदरभ मे
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete