Thursday, 29 December 2016

जाता २०१६


जाते हुए २०१६ में तीन बातें बहुत अद्भुत हुई। पहला किसी गीतकार को नोबेल पुरस्कार मिलना। दूसरा हिलेरी क्लिंटन का अमेरिकी चुनाव हारना। तीसरा टाइम  पत्रिका के वर्ष के सर्वाधिक प्रभावशाली नेता की दौड़ में नरेंद्र मोदी का डोनाल्ड ट्रम्प से पिछड़ जाना।

यद्यपि हमारी दैनिक चर्या में गीत घुले मिले हैं विशेषकर हमारी प्रार्थनाओं में। धर्म , नस्ल और भाषा की सीमाओं के परे।सामान्यतः हम गीतकारों को तात्कालिक भावनाओं के अभिव्यक्तकर्ता के रूप में मान और महत्व देते हैं और वह भी उनकी रागात्मक अभिव्यक्तियों के लिए। २०१६ के साहित्य के नोबेल पुरस्कार का मिलना भारत के लिए इस लिए भी महत्व पूर्ण हो जाता है कि इसी बहाने रविन्द्र नाथ ठाकुर फिर से समीचिन हो जाते हैं। सुख और संतोष इस बात का भी कि  राष्ट्रभक्ति के नाम पर होने वाली गलत बहसों के लिए नहीं बल्कि अपनी गीतांजलि को नोबेल पुरस्कार द्वारा  के समादृत किये जाने के  लिए याद आये।

पूर्व भारतीय राजनयिक स्वर्गीय बी के कौल की एक किताब थी - Nice Men Come Second. निश्चित तौर से डोनाल्ड ट्रम्प के मुकाबले हिलेरी ज्यादा सौम्य और शालीन थी और उनकी हार ने कौल का यह कथन साबित कर दिया। हर देश में राजनीति सच में एक जैसी ही होती है। जीतना महत्वपूर्ण है यानि पहला आने की दौड़। दौड़ में होना हारने वाले के लिए प्रेरणा और संतोष का व्यक्तिगत कारण भले ही हो मगर औरों के लिए भुला दिए जाने लायक एक घटना मात्र होती है।बगैर जीते हुए राजनीति नहीं की जा सकती। गनीमत है जिंदगी जीने के लिए जीतना आवश्यक नहीं।

और जो तीसरी घटना है उसको लिखने से पहले मेरी बायीं आँख फड़क  रही है। एक तो यह वैश्विक घटना है। फिर इसमें कूटनीति की भी सम्भावना लगती है। इसलिए ऐसी महत्वपूर्ण घटना पर लिखने से पहले लेखकीय  सावधानी के अतिरिक्त अन्य सावधानियों के प्रयोग के लिए बड़े बुज़ुर्गों के सुझाव  के  अनुरूप  इस प्रकरण पर मैं  अपनी बाई आँख को साक्ष्य मानते हुए अपने लेखन को यही विश्राम देता हूँ।

इति शुभ

करुणेश
पटना
२९। १२। २०१६ 

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