बगैर किसी आग्रह , दुराग्रह या पूर्वाग्रह के मैं यह ब्लॉग लिख रहा हूँ। वैसे तो दुर्योधन के प्रश्न का विभिन्न लोगों ने भिन्न - भिन्न तरीकों से उत्तर दे ही दिया है वेद व्यास , भीष्म और कृष्ण समेत फिर भी ये प्रश्न आज भी अक्सर ही सर उठाते हैं। यही कारण है कि ये प्रश्न आज भी प्रासंगिक और सामायिक हैं और इसीलिए विचारणीय भी। आइये इन प्रश्नों पर गौर करते हैं।
प्रश्न संख्या एक - क्या पिता का यह अधिकार नहीं कि वह अपनी मर्जी से अपने वैध जैविक पुत्र को अपना उत्तराधिकारी चुन सके। जैविक पुत्र के योग्यता का निर्धारण उसका पिता करेगा या कोई और। पैतृक उत्तराधिकार के सम्बन्ध में।
प्रश्न संख्या दो - यदि किसी कुल की कोई स्त्री (जैसे कि कुंती और माद्री) पति के जीवित रहते, बेशक उसकी सहमति से, अन्य पुरुष के संसर्ग से संतानवती हों तो क्या ऐसी परिस्थिति में ऐसी संतानें उन स्त्रियों के पति कुल का अंश मानी जाएँगी और क्या पति कुल की संपत्ति पर उनका कोई वैधानिक अधिकार भी होगा।
प्रश्न संख्या तीन - पुरुष की मर्यादाहीनता और अशिष्ट भाषण का दंड तो मृत्यु भी हो सकता है किन्तु स्त्री की मर्यादाहीनता और अशिष्ट भाषण का दंड क्या हो। याद करें द्रौपदी स्वयंवर में द्रौपदी द्वारा कर्ण का अपमान और इंद्रप्रस्थ के माया महल में द्रौपदी द्वारा दुर्योधन का अपमान। स्त्री को मनुष्येतर मानने की सामाजिक जिद कहाँ तक उचित है।
पुस्तकीय नैतिकता के धरातल पर इन प्रश्नों के उत्तर कई बार दिए जा चुके हैं। व्यहार के स्तर पर आज के सन्दर्भ में ये प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं। सामाजिक नैतिकता के स्तर पर भी और व्यक्तिगत नैतिकता के स्तर पर भी।
करुणेश
पटना१५। १२। २०१६
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