लिखना अब कितना आसान हो गया है। मोबाइल हो या कंप्यूटर किसी भी भाषा में तकनीक ने लिखना बिलकुल ही सरल और सुविधाजनक बना दिया है। अब न तो अपनी हैंडराइटिंग के सुपाठ्य होने और सुन्दर होने की किसी को फ़िक्र होती है न ही वर्तनी के शुद्ध या अशुद्ध होने की चिंता। तकनीक ने सबको लेखक होने का एक समान अवसर उपलब्ध करा दिया है। और इसी लिए इन्टरनेट पर आजकल लिखकड़ों की भरमार हो गयी है। अब तो पढ़ने वाले सही मायने में इस दुनिया के अल्पसंख्यक हो गए हैं। अरे अल्पसंख्यक ही क्यों ये तो विलुप्त प्राणियों की श्रेणी के बहुत करीब हैं यदि इनकी संख्या को आधार माना जाये।
अज्ञेय ने एक बार कहा था कि मनुष्य उतना ही धनी होता है जितने उसके पास शब्द होते हैं। शब्दों का भंडार पढ़ने से होता है। लेकिन पढ़ने की ऐसी कोई तकनीक तो अब तक ईजाद हुई नहीं कि सौ दो सौ पन्नों की किताब बगैर एक एक पन्ना पलटे हुए पढ़ ली जाये। पढ़ने के साथ एक और शर्त लागू है और वो है समझना। अब भला तकनीक समझने को कैसे समझाए।
इसलिए लोग पढ़े - लिखे की जगह मात्र लिखे रह गए हैं। वो भी खुद के लिए नहीं दुसरो के लिए। लेकिन दुर्भाग्य देखिये वो भी कोई नहीं पढता।
पटना
८। १२। २०१६
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