महान लोग संकल्पों के साथ जीते हैं और आम लोग विकल्पों के साथ। बोलचाल की भाषा में विकल्पों का ही दूसरा नाम दुविधा है। विकल्प यदि संज्ञा है तो दुविधा उसका विशेषण।
दुविधा में जीने का मजा ही कुछ और है। दुविधा की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसे कोई भी स्वीकार नहीं करता। लेकिन इसके साथ जीते सभी हैं। हम होते कुछ हैं , कहते कुछ हैं और करते कुछ और ही हैं। इतना ही नहीं समय , स्थान ,परिस्थिति और व्यक्तियों के बदलते ही यह कुछ भी बहुत कुछ बदल जाता है। अब आप ही बताएं यदि Change is the only constant सही है तो दुविधा में जीना सहज और स्वाभाविक।
दुविधा का अर्थ लोक स्वरुप में केवल दो विकल्पों का होना ही नहीं होता। बल्कि कई विकल्पों में एक चुनने की आजादी का अर्थ दुविधा में है। अक्सर ही हम एक साथ एक से अधिक विकल्पों का प्रयोग करते हैं। और इस तरह हम दुविधा की सुविधा का भरपूर आनंद उठाते हैं।
हमारे सामने सामान्यतः इतने विकल्प होते हैं कि दुविधा को चुनने में भी दुविधा हो जाती है। कुछ प्रचलित विकल्प इस प्रकार हैं - सच , सच नहीं , झूठ , झूठ नहीं, सही, सही नहीं , गलत , गलत नहीं आदि आदि।
दुविधा का विशेषज्ञता से इस्तेमाल दो लोग धड़ल्ले से करते हैं। एक राजनेता दूसरे धर्म गुरु। चूँकि इनका प्रभाव सामान्य जन जीवन पर सर्वाधिक होता है अतएव कोई अचरज नहीं जो सामान्य जन दुविधा के सुविधाभोगी हो गए हैं।
करुणेश
पटना९। १२। २०१६
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