If यानि यदि संसद चलता तो क्या होता। संसद में थोड़ा शोर कम होता तथ्य तब भी गुल होते । कम से कम दोनों सदनों के स्पीकर को काम करने का अवसर मिलता। नोटबंदी पर दावे प्रतिदावे होते। आम आदमी (पार्टी नहीं) को दोनों ही पक्षों में कुछ कुछ बातें सही लगती।हम कुछ ज्यादा ही कन्फुजियाये होते। विशेषकर भिन्न चैंनलों की प्राइम टाइम देखते हुए। हो सकता था एक आध जेपीसी बनती। उनके काम करने की समय सीमा निश्चित की जाती। कुछ विधायी कार्य संपन्न होते। भिन्न प्रकार की वितीय मांगों को सदन में रखा जाता और ध्वनिमत से उन्हें पारित किया जाता। ईमानदारी ,शुचिता और देशभक्ति की बाते होतीं। मैले कुर्ते वाले दूसरों के कुर्ते को ज्यादा मैला बताने के लिए अपना ज्ञान कोष प्रदर्शित करते।
But यानि लेकिन संसद नहीं चली।कौन सा आसमान टूट पड़ा।काम मिलना बंद हो गया तो मजदूर घरों को लौट गए। ऑफिस के बजाय एटीएम और बैंकों में लोगों की उपस्थिति बढ़ गयी। एटीएम ने कम काम किया। जिस देस में लोग वर्षों से काम न करने के आदि हों वहां आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस से लैस एटीएमों के कम काम करने के बावजूद लोगों की व्यस्था में श्रद्धा यथावत रही। सांसद अच्छी अच्छी बातें करते रहे। हम रात का प्राइम टाइम न्यूज़ कम्बल ओढ़कर देखते रहे और कहा उफ़ इस साल बड़ी ठण्ड है।
तो What माने क्या।मेरे जैसा बुद्धु कहे भी तो क्या। आप कुछ कहना चाहते हैं क्या ? कहने से पहले सोच लीजियेगा। If यदि But लेकिन का जबाब है न आपके पास। यदि नहीं है तो कहिये what माने क्या !!!!!!!!!
करुणेश
पटना
१६। १२। २०१६
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