आज शाम से या कुछ लोगों के अनुसार कल से चैत्र नवरात्र का प्रारम्भ हो रहा है। हिन्दू धर्म में नवरात्र का बहुत महत्व है। एक गण्य वर्ष में दो नवरात्र प्रचलित हैं। एक चैत्र नवरात्र और दूसरा शारदीय नवरात्र। चैत्र नवरात्र की पूर्णाहुति रामनवमी को होती है और शारदीय नवरात्र की दशहरा में। नवरात्र के दौरान हिन्दू घरों में देवी दुर्गा की पूजा - आराधना होती है।
देवी दुर्गा को समर्पित संस्कृत काव्य रचना, जिसका स्रोत मार्कण्डेय पुराण माना जाता है , उसे दुर्गा सप्तशती कहते हैं। प्रमुख रूप से इसके तीन खंड या सर्ग हैं - कवच , कीलक और अर्गला जिसका पाठन और वाचन ध्यान धारण करते हुए नवरात्र में किया जाता है। अर्गला खंड में कुल सत्ताईस द्विपदी हैं। अर्गला खंड के सत्ताईस में से चौबीस द्विपदियों में 'रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ' की आवृति हुई है। प्रत्येक द्विपदी के पहले पद में देवी दुर्गा की शक्तियों और उनके द्वारा किये गए कार्यों का आराधन है और फिर पूजक के कामना स्वरुप इस पद की आवृति की गयी है।
अपनी बात शुरू करने से पहले इतनी भूमिका मुझे आवश्यक लगी यद्यपि अधिकांश हिन्दू इसे जानते है विशेषकर महिलाएं। आप भी उत्सुक होंगे यह जानने के लिए कि जो बात अधिकांश को मालूम है तो यह ब्लॉग मैं लिख ही क्यों रहा हूँ। मुझे कुछ नया नहीं कहना बस आपकी याद ताज़ा करनी है।
जिस पद को ध्यान में रखकर यह ब्लॉग लिखा जा रहा है अब उसकी बात।
हम रूप की कामना करते हैं। हम जय की कामना करते हैं। हम यश की कामना करते हैं। करनी भी चाहिए। हम इन्हें प्राप्त करने के लिए आजीवन रत भी रहते हैं। पर जैसे ही 'द्विषो जहि ' की बात आती है हम भूल जाते हैं। द्विषो का अर्थ मेरी समझ में द्वेष , ईर्ष्या , काम और क्रोध है। हम कितनी गंभीरता से इन अवगुणों से बचने का उद्यम करते हैं। वास्तविकता तो यह भी है कि जैसे ही हमें रूप , जय और यश की प्राप्ति होती हैं 'द्विषो' हमारे अंदर उतना ही गहरा होता जाता है। जीवन के भिन्न - भिन्न क्षेत्रों में हमें रोज - ब - रोज इसका अनुभव होता है। हमें तो यह भी भान नहीं होता कि द्वेष, ईर्ष्या ,काम और क्रोध के सन्दर्भ में कब हम कारक होते हैं और कब कर्ता। करोड़ों लोग वर्षों से इसका पाठ करते हैं और आगे भी करते रहेंगे लेकिन 'द्विषो जहि ' की जगह 'द्विषो अहि ' की स्थिति से हम रोज दो - चार होते हैं।
हम लोग जिसकी कामना करते हैं उसका अर्थ भी समझें और कम से कम उसके एकांश को कार्यान्वित करने का सत्साहस दिखाएं ऐसी मंगल कामना तो करनी ही चाहिए। कम से कम अड़तालीस बार तो जरूर एक वर्ष में।
चैत्र नवरात्र और रामनवमी की शुभकामना।
करुणेश
पटना
२८। ०३। २०१७
No comments:
Post a Comment