हिन्दू धर्म ग्रंथों में पुराण का बहुत महत्व है। पुराण भी कई हैं और हर पुराण की रचना कुछ निश्चित उद्देश्यों को ध्यान में रख कर की गई है। पुराणों में अंतर्सबंध भी होता है। लेकिन उगटा पुराण धार्मिक पुराणों से पूर्णतः भिन्न है। इसे अधिक से अधिक व्यवहार पुराण कहा जा सकता है।
वास्तव में उगटा पुराण कोई पुस्तक नहीं बल्कि एक क्रिया है। बिहारी बोलचाल में इसे उगटा या उघटा पुराण कहते हैं। अन्य भाषाओँ या बोलियों में इसके समानार्थी शब्दों की जानकारी मुझे नहीं है।
जब किसी व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति पर अतीत में कहे या किये गए किसी कर्म या कथन को तोड़ - मरोड़ , काँट - छाँट कर इस तरह उदधृत किया जाये कि पहले व्यक्ति का कथन या क्रिया की तार्किकता और सामयिकता सिद्ध हो सके तो ऐसी क्रिया या कथन का होना उगटा या उघटा पुराण का होना सिद्ध करता है। निंदा रस इस पुराण की अंतर्धारा है। क्रोध , झुंझलाहट , चिड़चिड़ाहट और अधैर्य इसके मुख्य उत्प्रेरक होते हैं। इसकी उत्पत्ति का स्रोत संस्कृत के इस पद में कुछ कुछ झलकता है।
काव्यशास्त्र विनोदेन कालोगच्छति धीमताम।
व्यसनेन च मूर्खानाम निद्रया कलहेनवा।
(वर्तनी की अशुद्धियाँ माफ़ कर दी जाएं )
पुरुष सामन्यतः इसका प्रयोग अपने ऑफिसों में करते हैं। अपने सहकर्मियों के लिए और उनके साथ। स्त्रियां इसका प्रयोग घरों में करती हैं। शादी - शुदा महिलाएं इसका प्रयोग अपनी सास , गोतनी और ननद - भौजाई के लिए ज्यादा करती हैं। इसे व्यव्हार में लाने वाले या वाली सात्विक भाव से इसकी शुरुआत करते हैं। इसकी पूर्णता सामान्यतः रौद्र रस या वीभत्स रस पर होती है। चाहे इसकी पूर्णता कैसे भी हो भविष्य के लिए इसकी उपयोगिता कभी समाप्त नहीं होती है।
उगटा पुराण विश्व व्यापी है। राजनितिक दल और धर्म गुरु अपने सत्ता संस्थानों के हित - अहित के निकट और दूर गामी परिणामों को ध्यान में रखकर इसका प्रयोग करते हैं। यह एक मात्र ऐसा कार्य व्यवहार है जिसमे इंडिविजुअल और इंस्टिट्यूशन दोनों मिलकर आइडियल इडियोटिक्स करते हैं जिसे सामान्य जनता उनका मार्ग दर्शन समझती है और " येन महाजना गता सः पन्था " की तर्ज़ पर पर आँख मूँद कर आगे बढ़ती है।
उगटा या उघटा शब्द की व्युत्पत्ति उघाड़ना या उघड़ना में मानी जा सकती है। उघड़ना गरीबी को प्रदर्शित करता है जैसे उघड़े वस्त्र और उघाड़ना स्वैच्छिक प्रदर्शन है और इसमें कायिक भाव का अर्थ ज्यादा झलकता है। कहीं यही तो कारण नहीं कि हर उगटा पुराण की पूर्णता व्यतिगत आक्षेपों और चरित्र हनन पर समाप्त होती है।
करुणेश
पटना
२२। ०३। २०१७
उगटा पुराण विश्व व्यापी है। राजनितिक दल और धर्म गुरु अपने सत्ता संस्थानों के हित - अहित के निकट और दूर गामी परिणामों को ध्यान में रखकर इसका प्रयोग करते हैं। यह एक मात्र ऐसा कार्य व्यवहार है जिसमे इंडिविजुअल और इंस्टिट्यूशन दोनों मिलकर आइडियल इडियोटिक्स करते हैं जिसे सामान्य जनता उनका मार्ग दर्शन समझती है और " येन महाजना गता सः पन्था " की तर्ज़ पर पर आँख मूँद कर आगे बढ़ती है।
उगटा या उघटा शब्द की व्युत्पत्ति उघाड़ना या उघड़ना में मानी जा सकती है। उघड़ना गरीबी को प्रदर्शित करता है जैसे उघड़े वस्त्र और उघाड़ना स्वैच्छिक प्रदर्शन है और इसमें कायिक भाव का अर्थ ज्यादा झलकता है। कहीं यही तो कारण नहीं कि हर उगटा पुराण की पूर्णता व्यतिगत आक्षेपों और चरित्र हनन पर समाप्त होती है।
करुणेश
पटना
२२। ०३। २०१७
No comments:
Post a Comment