Saturday, 18 March 2017

हराना

जीतने से ज्यादा ख़ुशी हमें हराने में मिलती है। जीतना व्यक्तिगत मामला है। हराने में व्यापकता होती है। जीत दीर्घजीवी नहीं होती। हराया जाना जीतने से भी बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। इसीलिए जीतने पर विचार मंथन कम  ही होता है लेकिन हराये जाने के बाद  मंथन ,चिंतन और मनन एक आवश्यक प्रक्रिया है। 

हराने का सुख जीतने के सुख से दुगुना होता है। इसीलिए टेलीविज़न और अख़बारों में हराये गए लोगों की खबरें प्रमुखता पाती हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में जीतने का सुख हमें मुश्किल से मिलता है। हारना हमारे जीवन का स्थायी भाव है। लेकिन हमें हराया जाना पसंद नहीं। 

हराये जाने से हमारा कद छोटा होता है। हम बड़े नहीं बन पाते। इसलिए हम या तो जीतते हैं या हारते हैं लेकिन कभी हराये नहीं जाते। आखिर तर्क , मुहाबरे , लोकोक्ति और प्रेरक शब्दावलियाँ किस दिन  के लिए गढ़ी  जाती हैं। हराये जाने के बाद जीतने वाले की आँखों की ख़ुशी मुझे महत्वहीन बनाये इससे पहले बेहतर है मैं हार जाऊं। 
अपनी रूखी सूखी थाली के सामने दूसरे को छप्पन भोग खाते हुए निहारने की प्रजातान्त्रिक उदारता राजनीतिक दलों में हो तो हो मेरे पास तो नहीं है। 

करुणेश 
पटना 
१८। ०३। २०१७ 

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