Thursday, 20 July 2017

स्लैप (SLAP)

अंग्रेजी के शब्द स्लैप का शाब्दिक अर्थ होता है चाँटा , तमाचा या थप्पड़। सामान्यतः इसका प्रयोग घरों में बच्चों पर बड़ों के द्वारा किया जाता है - पारिवारिक दंड विधान के तौर पर। पहले स्कूलों में तो यह सर्वमान्य अधिकार हुआ करता था मास्टर साहब , गुरु जी या माट साब का और इसका विरोध भी नहीं होता था। न तो माता पिता द्वारा और न ही गांव घर के बड़े बुज़ुर्गों द्वारा। कहावत ही थी - " सिखाते गुरु जी नहीं , सिखाती छड़ी है।" थप्पड़ , चाँटा या तमाचा खाने वाला भी इसे प्रसाद स्वरुप ही ग्रहण करता था बिना किसी मनो मालिन्य के। 

थप्पड़ के अभिनव प्रयोग भारतीय सिनेमा में भी बहुलता से प्रदर्शित किये गए हैं। अमरीश पुरी  अभिनीत डॉक्टर डेंग के किरदार का मशहूर डायलाग अक्सर कानों में गूंजता है - " इस थप्पड़ की गूँज बहुत दूर  तक सुनाई देगी।" खलनायकों के चेहरे पर नायिकाओं और नायक की बहनों के तमाचे एक समय में हिंदी सिनेमा के अभिन्न अंग होते थे। 

कुछ तमाचे बेआवाज होते हैं। लेकिन इनकी भयावहता भीषण होती है। गाँव में चार पांच दशक पहले तीन घटनाएं निश्चित अभिशाप मानी जाती थी। पहला लगातार बेटी का पैदा होना , दूसरा किसी को घर मकान बनाने के लिए धूर्तता पूर्ण तरीके से प्रेरित करना और तीसरा किसी का केस - मुक़दमे में फँस जाना या फँसा  देना। इनमे पहला दैवीय अभिशाप था। दूसरा गँवई राजनीति का नमूना और तीसरा सताने और बदला लेने का तरीका। 

पहले दो अभिशाप अब लुप्तप्राय से हो गए हैं। लेकिन तीसरे का प्रयोग अधिकार संपन्न प्रभु वर्ग पूरी स्वच्छंदता से करता हुआ दीखता है। विशेषकर मानहानि के सन्दर्भ में और मीडिया के ऊपर। 

"द वायर - हिंदी" पर आज ही एक लेख पढ़ा।  इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली के संपादक प्रंजॉय गुहा ठाकुरता ने इस पत्रिका के सम्पादक पद से त्यागपत्र दे दिया है और अपने परिवार के साथ समय बिताने की इच्छा प्रगट की है। जैसा कि इस लेख को पढ़ने से ज्ञात होता है कि कुछ दिन पहले ठाकुरता और उनके तीन साथी लेखकों  द्वारा अडानी पावर लिमिटेड के द्वारा एक हज़ार  करोड़ रुपये की कर चोरी और बीजेपी सरकार द्वारा अडानी समूह को पांच सौ करोड़ रुपये का लाभ पहुंचने का स्पष्ट इशारा करते हुए एक विस्तृत लेख लिखा था। इस लेख की प्रतिक्रिया स्वरुप उन्हें अडानी ग्रुप के वकीलों द्वारा कानूनी नोटिस भेज दिया गया। इतना ही नहीं पत्रिका के संचालक ट्रस्ट बोर्ड ने पत्रिका के सम्पादकीय विभाग को यह लेख हटाने के लिए भी कहा है  जिसके बाद का घटना क्रम ठाकुरता का त्यागपत्र है। उक्त लेख के सहयोगी लेखक हैं - प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर , राजनीति वैज्ञानिक राजिव भार्गव , और समाज शास्त्री दीपांकर गुप्ता। 

यह लेख पढ़ने के बाद मेरे मन में यह विचार आया कि किसी लेख का विरोध या प्रतिरोध वकीलों द्वारा भेजा गया कानूनी नोटिस कैसे हो सकता है। क्या अडानी समूह ने पत्रिका को नोटिस देने के पूर्व अपनी सफाई भेजी थी। अडानी की मान हानि हुई या मान लाभ में कमी। 

सत्ता और वित्त के दंभ और अभिमान में किये जा रहे ऐसे प्रयासों का बड़ा सटीक नाम दिया है न्यूयोर्क टाइम्स ने "स्लैप - स्ट्रेटेजिक लासुईट्स अगेंस्ट पब्लिक पार्टिसिपेशन।" एक चांटा जो बेआवाज हो और उसकी धमक उतनी जो सोचने वाले दिमागों को सुन्न कर दे। धारणा का खेल खेलने वाले तथ्यों और तर्कों की बात क्यों करें।  यह भी उनके सम्मान के खिलाफ ही है। 

आज एक लेख कल एक पत्रिका परसों अखबार और फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। देश बदल रहा है। 

करुणेश 
पटना 
२०। ०७। २०१७ 


No comments:

Post a Comment

आज की कविता ; आज के लिए

न्याय मरे न्यायधीश मरे न्यायालय लेकिन मौन । इतने सर हैं , इतने बाजू देखो लेकिन बोले, कितने - कौन ? सत्ता की कुंडी खड़काने आये जो दो -...