Tuesday, 16 May 2017

अंत में न्याय

अक्सर हम सुनते हैं कि अंत में न्याय की जीत हुई। आखिर में सत्य विजयी हुआ। यह वाक्य बार - बार सुनने को मिलते हैं। मेरे पास एक प्रश्न है। यदि अंत में सत्य और न्याय आते हैं तो उसके पहले क्या ? निश्चित ही वह और कुछ हो या न हो सत्य और न्याय तो नहीं ही होगा। इतना ही नहीं सत्य और न्याय शुरू में ही क्यों नहीं मिलते। क्या ये  इंतजार में बैठे रहते हैं किसी वी आई पी की तरह ताकि अन्याय और असत्य भीड़ में बैठकर तालिया बजाएं इनके लिए। न्याय और सत्य ही एकमात्र दो ऐसी चीजें हैं जिनके लिए समय का कोई मोल नहीं। 

देर लेकिन अंधेर नहीं की मानसिकता हमारे जीवन का स्थायी भाव बन गया है। 

इसे हमारी व्यवस्था का दोष कहें या मानवीय दुर्बलता। समझ में नहीं आता। व्यवस्था की बात करूँ तो मानवीय स्वाभाव का प्रश्न सर उठा लेता है और मनुष्य की दुर्बलताओं का जिक्र हो तो यह प्रश्न व्यवस्था के मकड़जाल में उलझ कर रह जाता है। 

आप इस प्रश्न को कैसे देखते हैं या इसे प्रश्न मानते भी है या नहीं - मैं नहीं जानता लेकिन मेरी समझ में यह प्रश्न विवेक का है। व्यक्तिगत विवेक का भी और सामूहिक विवेक का भी। 

विवेक का शिक्षण - प्रशिक्षण और अभ्यास हमारी शिक्षा व्यवस्था का अंग ही नहीं है। न ही परिवार में , न ही समाज में न ही विद्यालयों / महाविद्यालयों में। हमने जीवन में कुछ बातें यूँ ही मान ली हैं। इनमे एक बात यह भी कि विवेक उम्र के साथ आता है जैसे शिक्षालयों में मिलने वाली डिग्री जो कोर्स पूरा होने के बाद प्राप्त होती है। मैं यह नहीं समझ पाता कि पांच साल के बच्चे से उसके उम्र के अनुरूप विवेक की उम्मीद क्यों न की जाए उसके सोच और व्यव्हार में। मैं यह भी मानने को तैयार नहीं कि पचपन साल के व्यक्ति का विवेक संतृप्त (saturated) हो जाएगा। हमें बदलने के लिए तैयार रहना होगा हर क्षण हर पल क्योंकि समय तो बदलेगा ही हम चाहें न चाहें। देर लेकिन अंधेर नहीं की मानसिकता अक्सर देर तो करती ही है अँधेरे को गहरा और अंतहीन भी कर देती है। 

विवेक की समझ हमारे अंदर वैज्ञानिक तार्किकता से आती है। चाहे व्यक्तिगत विवेक की बात हो या सामूहिक विवेक की। इसका शिक्षण - प्रशिक्षण तो परिवार से ही प्राप्त हो सकता है जिसका अभ्यास विद्यालयों / महाविद्यालयों की परिधि में हो ताकि सामूहिक विवेक समाज में अपनी सार्थक और सक्रिय भूमिका अदा कर सके। 

करुणेश 
पटना 
१६। ०५। २०१७ 

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