सामान्यतः शिक्षा और रोजगार का अन्योनाश्रय सम्बन्ध माना जाता है। यह भी सर्वमान्य है कि शिक्षा व्यक्ति को रोजगार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। रोजगार का सीधा सम्बन्ध उत्पादन से है। रोजगार का सम्बन्ध समाज में व्यक्ति की उपयोगिता और मूल्यवत्ता से भी है। अर्थात शिक्षा व्यक्ति को समाज में आर्थिक रूप से उपयोगी और मूल्यवान बनाती है - ऐसा कहा जा सकता है।
सामन्यतः जब हम शिक्षा की बात करते हैं तो इसका अर्थ अकादमिक शिक्षा से ही लिया जाता है। जीवन के प्रारंभिक वर्षों से ही अकादमिक शिक्षा की शुरुआत हो जाती है जो कम से कम १५ - १७ वर्षों तक तो सामान्यतः चलती ही है। लेकिन इतने वर्षों की शिक्षा हमें आर्थिक रूप से समाज में उपयोगी नहीं बना पाती। तभी तो " कौशल विकास " जैसी योजना की जरूरत महसूस हुई। यह दुर्भाग्य और दुर्घटना दोनों ही है कि आजादी के बाद की लगभग दो पीढ़ियां इसका शिकार हुईं। इसलिए शिक्षा की दुरवस्था और घटते रोजगार के मौके की पहचान यदि राष्ट्रीय आपदा के रूप में नहीं की जा रही है तो यह देश के लिए किसी भी बड़े खतरे से बड़ा खतरा होगा जिसके परिणाम कल्पनातीत होंगे।
अंग्रेजी में एक कहावत है "Rising tide raises all boats" जिसका हिंदी रूपांतरण होगा समुद्र में ज्वार आने पर लहरें सभी जलयानों का स्तर उठा देती हैं। इसका निहितार्थ यह भी कि ऐसा होने का कारण जलयानों की अतिरिक्त योग्यता या नाविकों की कार्यक्षमता न होकर समुद्र में उठने वाला ज्वार है। इस उद्धरण को यहां कहने का तात्पर्य यह भी है हमें तकनीक सम्पन्नता को मानवीय विकास की सम्पूर्णता मानने की भूल नहीं करनी चाहिए। इसे सिद्ध करने के लिए जटिल आंकड़ों की दुनिया में न जाकर सिर्फ यह देखने से ही पर्याप्त प्रमाण मिल जाएगा कि एकाधिक बार मौलिक आवश्यकताओं पर किया जाने वाला व्यय सुविधा के लिए किये गए तकनिकी आवश्यकताओं के मुकाबले काफी कम होता है। राजनीति इसे ही विकास का पैमाना मानती है और अपनी उपलब्धि भी। इस विकास के दिवास्वप्न से हम सब अनेकों बार छले जाते है लेकिन यह इतना आकर्षक और सम्मोहक होता है कि इसकी कुटिलता हमें दिखाई नहीं देती। यही कारण है कि शिक्षा और रोजगार जैसे गंभीर विषय जो सदियों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं या तो आंकड़ों में खो जाते हैं या अरण्य रोदन बन कर रह जाते हैं।
औद्योगिक क्रांति के बाद वैश्विक तकनीक सम्पन्नता से पूरे विश्व में एक तकनिकी ज्वार आया है। परमाणु विज्ञानं और सूचना एवं संचार क्रांति ने इस ज्वार को अति गतिशीलता दी है और बहु आयामी भी बनाया है। इस युग ने जो सबसे बड़ी चुनौती हमारे सामने रखी है वह है बदलाव की गति (Speed of Change). गति का परिमाण आज तीव्रतम है और इसके और अधिक तीव्रतर होने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
अब फिर से मूल प्रश्न पर लौटते हैं। हमने यह मान लिया कि आज की शिक्षा कौशल विकास नहीं करती। और इसीलिए यह रोजगार परक भी नहीं। साथ - साथ हमें यह भी जानना और मानना होगा कि यह शिक्षा बदलाव की गति से अपना साम्य स्थापित करने में पूरी तरह विफल है। कोई आश्चर्य नहीं कि देश का सेंसेक्स एवं जी डी पी और बेरोजगारी दोनों साथ - साथ नयी ऊचाइंयों को छू रहे हैं।
कौशल विकास के द्वारा हम रोजगार परकता यानि राष्ट्रीय उत्पादकता की वृद्धि कर तो सकते हैं लेकिन कौशल विकास कोई औद्योगिक संयंत्र लगाने जैसा काम तो है नहीं। ऐसा भी नहीं कि किसी एक सरकार के कार्यकाल में यह कार्य पूर्ण हो सके। इसके लिए तो पीढ़ियों में और पीढ़ियों तक निरंतर बदलाव की आवश्यकता होगी उस गति के साथ जिस गति से तकनिकी बदलाव हो रहे हैं इसके आयामों की सम्पूर्णता सहित।
कम से कम राजनितिक , शैक्षणिक और सामाजिक व्यस्था इसकी निरंतरता बनाये तो रखे और इसकी गंभीरता भी। याद रखें यह एक मात्र राष्ट्रीय दायित्व है जिसके समाप्त होने की अंतिम तिथि कभी नहीं आएगी।
करुणेश
पटना
३०। ०५। २०१७
अब फिर से मूल प्रश्न पर लौटते हैं। हमने यह मान लिया कि आज की शिक्षा कौशल विकास नहीं करती। और इसीलिए यह रोजगार परक भी नहीं। साथ - साथ हमें यह भी जानना और मानना होगा कि यह शिक्षा बदलाव की गति से अपना साम्य स्थापित करने में पूरी तरह विफल है। कोई आश्चर्य नहीं कि देश का सेंसेक्स एवं जी डी पी और बेरोजगारी दोनों साथ - साथ नयी ऊचाइंयों को छू रहे हैं।
कौशल विकास के द्वारा हम रोजगार परकता यानि राष्ट्रीय उत्पादकता की वृद्धि कर तो सकते हैं लेकिन कौशल विकास कोई औद्योगिक संयंत्र लगाने जैसा काम तो है नहीं। ऐसा भी नहीं कि किसी एक सरकार के कार्यकाल में यह कार्य पूर्ण हो सके। इसके लिए तो पीढ़ियों में और पीढ़ियों तक निरंतर बदलाव की आवश्यकता होगी उस गति के साथ जिस गति से तकनिकी बदलाव हो रहे हैं इसके आयामों की सम्पूर्णता सहित।
कम से कम राजनितिक , शैक्षणिक और सामाजिक व्यस्था इसकी निरंतरता बनाये तो रखे और इसकी गंभीरता भी। याद रखें यह एक मात्र राष्ट्रीय दायित्व है जिसके समाप्त होने की अंतिम तिथि कभी नहीं आएगी।
करुणेश
पटना
३०। ०५। २०१७