Monday, 9 January 2017

सड़कों पर पोर्न

क्या आपने अपने जीवन में कभी पोर्न पढ़ा या देखा है। आप जबाब न दें। मैंने पढ़ा भी है और देखा भी है। और यह भी जाने कि मैं एक पुरुष हूँ और नारीवादी कतई नहीं। 

हमारे जीवन का  कठोर यथार्थ यह है कि हमारी एकांत की नैतिकता हमारी सार्वजानिक नैतिकता से नितांत अलग होती है। लेकिन यदि हमारा एकांत सार्वजानिक हो जाए तो नव  वर्ष की पूर्व संध्या पर बंगलोर और दिल्ली की सड़कों पर स्त्रियों और महिलाओं के साथ  जो  हुआ वैसी वीभत्स घटनाओं को जन्म देती है। बेशक यदा कदा ही सही लेकिन ऐसी घटनाएं होती तो हैं ही। उन्माद हमारे ऊपर इस तरह छा जाता है कि मनोवेगों पर सामन्यतः लगाया हुआ अंकुश उश्रृंखल और अविवेकी होकर ऐसी मर्यादा हीन  नग्नता कर बैठता है। इतना ही नहीं हम पुरुष महिलाओं के दैनिक जीवन को इस सन्दर्भ में असहज और असुविधाजनक बनाने में कोई कोर कसार नहीं उठा रखते हैं। इसे आप स्वीकारोक्ति भी माने और सत्योक्ति भी। हाँ इसे भी आप जरूर याद रखें कि अपवाद नियम को सिद्ध करते हैं।  

हम मनुष्य क्यों नहीं हो पाते ? विपरीत लिंग के प्रति हमारा आकर्षण हमारी शारीरिक हिंसा के द्वारा क्यों व्यक्त होता है। सबके पास अपने अपने कारण हैं। शायद ही कोई ऐसा पुरुष हो जो इसकी निंदा न करता हो। लेकिन हम इस से बच क्यों नहीं पाते। मेरे व्यावहारिक समझ में दो  बातें आती हैं। पहली यह कि पुरुष की पशुता यानि  शारीरिक ताकत को उसके पहचान के साथ जोड़ना और साथ ही पुरुष को समाज के  संरक्षक की भूमिका सौपना। दूसरा स्त्रियों के कौमार्य शुद्धता को अत्यधिक महत्व देना और साथ ही उसे मनुष्येतर दैवीय  रूपों में आख्यायित  /व्याख्यायित करना। शिकारी और शिकार का जो सम्बन्ध होता है वैसे ही सम्बन्ध नारी और पुरुष के बीच आज स्थापित है और इसी को आधार मानकर (व्यवहार में) समाज की संरचना हुई है। 

तो मेरी समझ में समस्या यदि उपरोक्त है तो समाधान क्या है। समाधान शारीरिक शक्ति के प्रदर्शन के भिन्न रस्ते हो सकते हैं जैसे खेल। बचपन से यदि हम खेलों को जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाएं तो शायद शक्ति प्रदर्शन  के कुछ बेहतर रास्ते मिल जाएँ। साथ ही स्त्रियों को अपने कल्पित दैवीय स्वरूपों से बाहर  निकलने की आवश्यकता है  ताकि वे एक मनुष्य की तरह अपना जीवन जी पाएं बगैर किसी सामाजिक दबाव या तनाव के। 

बड़े बड़े लोगों ने बड़ी बड़ी बाते कही हैं इस विषय पर लेकिन यह अदना लेखक जो समझा सो लिखा। आप को असहमत होने की पूरी स्वतंत्रता है। 

करुणेश 
पटना 
९। १। २०१७ 

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