Saturday, 14 January 2017

संक्रांति

संक्रांति का अर्थ है बदलाव या परिवर्तन का वह बिदु जहाँ से एक ख़तम होता है तो दूसरा शुरू। इस अर्थ में हमारा पूरा जीवन चक्र ही संक्रांति काल है। जरा गौर से सोचने पर हमें अनुभव होगा कि संक्रांति न तो अतीत है न ही वर्तमान। यह तो दोनों का संधिस्थल है । एक ऐसा काल्पनिक संधिस्थल जो होते हुए भी नहीं होता क्योंकि समय तो अविरल होता है अतः समय की कोई संक्रांति नहीं हो सकती। हाँ समय के गणकों की संक्रांति को ही हम सामान्यतः संक्रांति कहते हैं। इसी तरह घटनाओं एवं स्थितियों - परिस्थितियों के रूपांतरण की प्रक्रिया में एक या एकाधिक बिंदुओं को हम संक्रांति से परिभाषित करते हैं। 

हमारा पूरा जीवन सहज और असहज की ओर  आने जाने का संक्रांति चक्र है। हमें सहजता भी असहज बनाती है और फिर किसी संक्रांति से गुजरते  हुए असहज होते हैं लेकिन संतुष्ट या सुखी नहीं। यह चक्र अनवरत चलता रहता है। 

मकर  संक्रांति यदि  परिणाम की प्राप्ति की आशा है तो मेष संक्रांति  नए उद्यम के शुरुआत की पूर्व पीठिका। कृषि आधारित अर्थव्यथा के सन्दर्भ में। दोनों संक्रांतियों के बीच का काल मनोरंजन या रसरंजन काल है। सहज होने का समय। 

 सहजता के स्वागत के प्रवेश द्वार पर खड़े सभी लोगों का हार्दिक अभिनन्दन। इसका भरपूर आनंद लें तबतक जबतक सहजता असहज न हो जाए। 

करुणेश
पटना
१४। ०१। २०१७

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