(माई की कल यानि २ सितम्बर को पुण्य तिथि पर सादर )
सादर प्रणाम
बाबूजी के चिट्ठी लिखले रहीं। ओकरा से तोरा सबके समाचार मिलिए गईल होई। वैसे सबके हाल ठीक बा। अउर चाल त तू सबके जानते बाड़ू त हम का लिखीं।
तोरा गइला से दू गो बात के तकलीफ हो गईल। अइसन हमरा लागेला। अउर लोग के नइखी जानत। ए गो जीभ के स्वाद आ दूसर बतकूचन। बाबूजी त सुनते ना रहन। आ जादे कह द त अल्लड़ - बल्लड़ कह देत रहन ओकरा के।
ई बात नइखे कि अब खाना में स्वाद न मिले लेकिन बने से पाहिले एके तकारी के कतना तरीका से बनावल जा सकेला एकर कहानी कहे वाला अब कोई नइखे आ ना कोई के मन लागे ई सब कहे सुने में। मीट मछरी बनावे के तौर तरीका आउर ओकर किस्सा कहानी त तोरे साथे गुजर गईल।
जउन दोसर बात जेकर कमी हमरा खलेला उ बा गलत कहे आ करे के आजादी। अब त भाइयो बहिन में कुछ गलत कह सुन देता त रिश्ते ख़तम हो जाये के डर लागल रहेला। भौजाई आ बहनोई के बात का कहीं। तू रहिस त तोरा से कुछो कह सकत रहे आदमी। गलती करे के भी हिम्मत रहे आ गलती कहे के भी। जानते रहे आदमी कि कुछो क के तू सब संभार लेबे। और संभार लेते रहे तू। खाली हमरे खाती न कोई खाती। तोरा खातिर गलती सही से जादे जरूरी रहे सबके एके साथे रखल। तबे त आज तक निभता कम बेस कर के। आ आगे भी निभिये जाइ।
ले हम त बाते फिंचे लगनी। जाए दे। तोरे से न कह तानी। आउर सब ठीके बा।
जइसे बाबूजी भर जिंदगी गोदना गोदत (लिखत - पढ़त ) रह लन उही लच्छन हमरो ह। तू ही न कहत रहे - दर्ज़ी के बेटा जब तक जीवे तब तक सीवे।
बाकी तोर आशीष।
तोहार
" कपिल मुनि "
करुणेश
पटना
०१। ०९ २०१७
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