साल १९१७। देश भारत। राज्य बिहार। जिला चंपारण। नील की खेती। तीनकठिया कानून। अंग्रेजी शासन। विधि की व्यस्था। विधि आधारित न्याय प्रणाली। किसानों की दुर्दशा। राज कुमार शुक्ल का बुलहटा। गाँधी का आगमन। विधि की व्याख्या। विधि की वैधता को चुनौती। तत्कालीन शासकीय एवं न्याय व्यस्था का सम्मान। किन्तु विचारों की दृढ़ता एवं अडिगता। स्थानीयता के साथ सहभागिता। अवरोध हीन विरोध का कर्म।
यही रहा होगा आज से सौ साल पहले जिसे आज हम चंपारण सत्याग्रह के नाम से जानते हैं।
साल २०१७। देश भारत। राज्य कोई भी। जिला कोई भी। कैसी भी खेती। खेती - किसानी से सम्बंधित सारे कानून। संविधान का संप्रभु शासन। विधि की व्यवस्था। विधि आधारित न्याय प्रणाली। किसानों की आत्महत्या। आर टी आई एवं समाजिक कार्यकर्ताओं की कुलबुलाहट। ------------------- ? धरना , प्रदर्शन। कर्ज माफी। सस्ते दर पर ऋंण की सुविधा के वादे। फिर कर्ज माफ़ी। स्थानीयता के साथ सहभागिता का दिखावटी निभाव। विधि एवं व्यस्था की अधकचरी समझ। विचारों की उग्रता। शाब्दिक उद्दंडता। दम्भी प्रतिरोध।
फेसबुक , ट्विटर , व्हाट्सप्प , ब्लॉग पर सक्रिय हम जैसे लोग फैलते और बढ़ते चम्पारण (१९१७ वाला) के बस मूक साक्षी बनने को अभिशप्त हैं क्योंकि हमें गांधी का इंतजार है। बुलहटा भेज दिया है हम लोगों ने। देखें कब तक आते हैं गांधी हमारे पास , हमारे भीतर।
करुणेश
पटना
१२। ०४। २०१७
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