Wednesday, 30 November 2016

पहला दिन पहला ब्लॉग

मुझे ब्लॉग की जरूरत क्यों महसूस हुई. आज के इंटरनेटि युग मे शायद ऐसा कुछ भी नहीं जो लिखा , सुना देखा या पढ़ा न गया हो. फिर भी कुछ छूट जाता है मेरे हिसाब से या शायद उस तरीके से कहा , सुना, पढ़ा या देखा नहीं जाता। अब तक मेरी आवाज घरवैया ही रही. कुछ लिखना उस से भी कम सहेजना और उस से भी कम कहना पर सोचना जारी रहा।  वैसे भी सोच कर सोचा कहाँ जा सकता है।  सोचने के लिए विषयों की कमी कभी नहीं रही।  वैसी हर बात जो स्फुरण दे , सहलाये या सिहरन पैदा करे सोचने के लिए उकसाती रही।  और इस तरह सोचना  भी मेरे दैनिक चर्या का एक हिस्सा बन गया. क्रिया कर्ता के ऊपर हावी हो गयी। और सिलसिला यहाँ तक आ पहुंचा।

यह  भी कि अग्रजों का प्रोत्साहन  और उस से भी ज्यादा अनुजों की अनुशंसा इस का कारक  रही।  नामों के औचित्य और महत्व से ज्यादा उनकी सहभागिता और सहजीविता है.

मेरे इस उपक्रम का उद्देश्य मात्र अपनी कहना ही नहीं आप की सुनना भी है।  आईये गप करें।  

करुणेश 
पटना 
३०। ११। २०१६ 

आज की कविता ; आज के लिए

न्याय मरे न्यायधीश मरे न्यायालय लेकिन मौन । इतने सर हैं , इतने बाजू देखो लेकिन बोले, कितने - कौन ? सत्ता की कुंडी खड़काने आये जो दो -...